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शशि काण्डपाल द्वारा प्रकाशित
14 जून, 2020

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गुडी, आलय, गोपुरम, विरूपाक्ष, मंडप, सरोवर जैसे शब्दों के बहुतायत प्रयोग कर्नाटक में  देखने को मिले। उदाहरणार्थ अनंतशयन गुड़ी, आनेगुन्दी…मतलब गाँव।

बादामी कर्नाटक का दूसरा बड़ा ऐतिहासिक स्थान है। इसे “वातापी” नाम से भी जाना जाता था। हमारे देश के सभी स्थान विदेशी पर्यटक खूब अच्छे से देखते हैं। कम ख़र्च में छोटे छोटे होमस्टे में रहते हैं, मोटर साइकल किराए पर लेते हैं। लोकल खाते हैं और खूब घूमते हैं।

दो दिन हम्पी को देखने में  गुजारने के बाद अल्ल सुबह की टैक्सी बुक करके बादामी आ गए। 

भूतनाथ मंदिर

होसपेट से बादामी करीब 120 किलोमीटर है। सड़क बहुत अच्छी है सो करीब 3 घंटे में बादामी पहुँच गए। होटल की कोई समस्या नहीं है अतः वहाँ जाकर भी बुकिंग कर सकते हैं। 
बादामी भी दो दिन में देखा जा सकता है।

पहला दिन – बादामी केव्स, म्यूजियम,फोर्ट, भूतनाथ मंदिर समूह और उससे लगा अगत्सय तालाब

बादामी केव्स चार के समूह में, पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके पत्थरों को काटकर बनाई गई विशालकाय गुफाएँ हैं।  

चालुक्य राजा बौद्धो, जैनियों, शैव और वैष्णव सभी को संरक्षण देते थे। उस समय के राजा कीर्थिवर्मन ने गुफाएँ बनवाई थीं लेकिन चारों गुफाए अलग अलग राजाओ के समय पर बनी हैं। 

वातापी में क्योंकि सभी भिक्षुओं को जप, तप, स्नान की सुविधा थी सो सारे देश के बहुत से भिक्षु बादामी में आकर रहने लगे जिससे धर्म खूब फूला फला। आखिरी गुफा जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बनी। आश्चर्य कि जब आधुनिक हथियार, डायनामाइट, मशीने नहीं थीं तब एक ही पहाड़ को काटकर गुफा बनाना, उसमे मूर्तियाँ उकेरना, छत पर फूल बनाना बेहद श्रम साध्य रहा होगा। 

कलाकारी और विशालता दोनों अद्भुत है।

पहली गुफा से दूसरी गुफा तक रास्ता

 यहाँ चारों गुफाओं की अपनी खासियत है जैसे पहली गुफ़ा शेव्य जिसमें अठारह हाथों वाली शिव प्रतिमा तांडव नृत्य करते हुए उकेरी गई है। 

दूसरी वैष्णव जिसमें विष्णु वामन अवतार में हैं लेकिन अंदर कोई आकृति नहीं उकेरी गई है।  

तीसरी गुफ़ा की विशेषता विजय नरसिम्हा और चौथी जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ से सुशोभित है।  

आप यहाँ से नीचे अगत्स्य झील देख सकते हैं जिसमें गुफा के पीले, नारंगी, लाल रंग के पत्थरों की छाया दिखती है जो माहौल को जादुई बनाती है।इसे अगस्त्यतीर्थ भी कहते हैं। यहीं भूतनाथ मंदिर समूह भी है जो कि चालुक्य वास्तु का अद्भुत नमूना है।

बदामी की गुफाओं के समूह से दूसरा गुफा मंदिर

गुफ़ा से नीचे की ओर एक रास्ता गाँव से होता हुआ म्यूजियम को जाता है। 

म्यूजियम देखते हुए ऊपर गुफाओं को देखने/घूमने जाया जाता है।
ऊपर शिवालय जाने के लिए बेहद संकरी सीढ़ियाँ गईं हैं और बाक़ी किले के लिए विशालकाय पहाड़ काटकर रास्ते भी बनाये गए हैं। ऊपर शिवालय हैं। 

टीपू सुल्तान का बनवाया “फोर्ट वॉच टावर” है जहां से आप पूरा बादामी शहर  देख सकते हैं और चारों गुफाओं का विहंगम दृश्य भी देख सकते हैं। 
अनाज भंडारण के लिए गोल गुंबद दिखते हैं जैन मंदिर भी है। 

चालूक्यों के साम्राज्य का वास्तु बहुत खूबसूरत था।  

भूतनाथ मंदिर समूह दो भागों में बना है इसमें एक रेप्लिका है। वहाँ ग्रामीण महिला अनाज कूटना, गर्मी से बचने के लिए बैठना आदि करती थीं। इतना सब देखने तक शाम हो चुकी होगी। 

चाहें तो तांगा करके बाजार में आ जाएँ। आप मार्केट घूम सकते हैं। सूखे मेवे की बनी बर्फी तथा और भी कई प्रसिद्ध मिठाइयाँ खरीद सकते हैं।

बादामी किला स्थित अनाज भंडार स्थल
बादामी किला
बादामी किला स्थित शिवालय
बादामी किला
अगत्स्यतीर्थ लेक
ये प्राँगण की प्राचीर है

दूसरा दिन –

होटल से कह कर पहले ही टॅक्सी का इंतजाम कर लें और दूसरे दिन सुबह जल्दी घूमने निकल जाएँ। सबसे पहले “ऐहोल / दुर्गा टैम्पल कॉम्प्लेक्स” देखने जाएँ। ये मंदिरों का समूह हैं और यहीं के वास्तु से हमारी संसद की बनावट को लिया गया है।

बीच में हेच्छुमल्ली केव्स देखें जो कि बादामी केव्स से पहले डमी के तौर पर बनाये गए थे।

“पट्टादक्कल” भी मंदिर समूह है और देखने लायक है। विरूपाक्ष मंदिर, दुर्गा मन्दिर, नागार्जुन मंदिर वास्तु के हिसाब से भव्य और बहुत खूबसूरत हैं। यहाँ टिकिट है और एक ही परिसर में आपको सारे मंदिर मिल जाएंगे। दो  घंटा आराम से लगेंगे।  

बीच रास्ते  में “महाकुटा शिव मंदिर” भी मिलेगा, इस मंदिर को दक्षिण की काशी कहते है। यदि ऑनलाइन, परिसर में यहाँ के लिए कमरा बुक करवा सकें तो फ्री में बेहद सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।

आखिर में “बनाशंकरी मंदिर” के दर्शन करते हुए बादामी वापस आ जाएँ।

नोट-हर जगह अपना आईडी कार्ड तैयार रखें।

जम्बुलिंगेश्वर मंदिर, पट्टडकल
कड़ासिद्धेश्वर मंदिर, पट्टडकल
नंदी मंडप, पट्टडकल
ऐहोले के दुर्गा मंदिर का पोर्च
सबसे पुरानी रॉक कट गुफा मंदिर में से एक: रावण फड़ी गुफा
ऐहोले का दुर्गा मंदिर
गलगनाथ मंदिर, पट्टडकल
गलगनाथ मंदिर में अंधकासुर का वध करते भगवान शिवा
बनशंकरी देवी मंदिर में लकड़ी का रथ

खर्च

होटल – 950 से 2500

बादामी घूमना – पैदल (तांगा मिल जाए तो रु 100)

केव्स टिकिट – 25/प्रति व्यक्ति

लंच/डिनर – बेहद सस्ता (लोकल खाएं,कटहल की सब्जी,रागी की रोटी,स्थानीय दाल और मंसूरी चावल)

दूसरा  दिन

टॅक्सी – 1500 / 8 hours

पटदक्कल – रु 10/ प्रति व्यक्ति

लंच – स्थानीय होटल रु 50/प्रति प्लेट दोनों दिन

डिनर – होटल में रुचि अनुसार



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3 Comments

Anamika Bose Roy · August 30, 2020 at 12:28 pm

Very nicely written, images are captivating 👍👍

    Shivam Singh · August 30, 2020 at 2:09 pm

    Thank you .. 🙂

    shashi · August 30, 2020 at 9:20 pm

    Thanks Anamika for your nice words…Badami is really must visit place.

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