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शशि काण्डपाल द्वारा प्रकाशित
13 जून, 2020

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क्या आपने किसी भवन के खंभो पर उँगलियाँ बजाने से बांसुरी सी आवाज आते देखी है?

एक ऐसा कृष्ण  मंदिर हम्पी में है!

एक सा रे गा मा मंदिर है जिसके छप्पन खंभे हैं।

क्या आपने किसी देवालय की पूर्व दीवार में बने छेद से अंदर आते उजाले में उसी के गोपुरम की उल्टी छाया देखी है? ऐसा विरूपाक्ष मंदिर में होता है। ये बिलकुल कैमरा की नकल है।

अगर आप भारत के बहुत खूबसूरत और ऐतिहासिक महत्व का स्थान   देखना चाहते हैं तो हम्पी/कर्नाटक अवश्य जाएँ। भारत का इतिहास,इसका वैभव आपको आश्चर्यचकित कर देगा। जौहरी बाज़ार,मंदिर,जलाशय,नृत्यांगन,वास्तु सब स्तब्ध करने वाली जगहें हैं।

ये पूर्व में विजयनगर साम्राज्य कहलाता था और प्राचीन समय में पंपापुर।  ये अति वैभवशाली राज्य था। तमाम राजाओं  के बीच “राजा कृष्ण देव राय” के समय में ये व्यापार, संस्कृति,पर्यटन,भवन निर्माण के चरम पर था। मंदिरों में बने ध्वज स्तम्भ, दीप स्तम्भ आश्चर्य में डालते हैं कि हम इतने उन्नत थे! ये बहुत बड़ा इन्टरनेशनल बाजार था।  

हम्पी दो भागों में बटा  हुआ है। बीच में तुंगभद्रा नदी बहती है। इस तरफ हम्पी मंदिर समूह है और दूसरी तरफ के एरिया को किष्किंधा कहते हैं। आप बिलकुल सही समझे हनुमान और सुग्रीव की जन्मस्थली।  

आइये पहले हम्पी का परिचय कर लें।

कृष्णदेव राय का पोता सदाशिवराय अपने पिता अच्युतराय  की असमय मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा लेकिन संरक्षक के नाते सारे अधिकार रामराय के पास रहे क्योंकि वो बच्चा था और आखिर तक कठपुतली बना रह गया।  

सदाशिव ने  1543 से 1581 तक राज्य किया। उसको विरासत में महान राज्य का वैभव मिला था लेकिन कालांतर में रामराय ने दरबार, सेना में मुसलमानों को खूब जगह दी। इससे उन्हें हुकूमत के सारे अंदरूनी राज मालूम पड़ गए। जब तक रामराय को षड्यंत्र का पता चलता काफी देर हो चुकी थी। 

मुसलमान दरबारियों ने एक होकर विजयनगर पर हमला बोल दिया। इसमें अहमदनगर के राजा ने भी हिस्सा लिया। लूटपाट, हत्याएं हुईं और हम्पी उजड़ गया। पूरे छह महीने तक शहर धू धू कर जलता रहा। राजा, संरक्षक तथा एक लाख लोग  मारे गए  थे।
रामराय जब शाह के हाथों कैद हुआ तो शाह ने उसका सर काट कर भाले की नोक पर लगा कर इतनी ऊंचाई पर रख दिया ताकि हिन्दू सैनिक उसे देख सकें। प्रजा भय से इधर उधर भाग गई।  
इस तरह एक स्वर्ण साम्राज्य का अंत हुआ ! एक उजड़ा साम्राज्य आज भी वैभव शाली दिखता है।

पहला दिन –   हम्पी मंदिर समूह

हम हम्पी देखने के लिए बंगलोर से रात की ट्रेन पकड़ कर 13-12-2019 की सुबह साढ़े छह बजे होसपेट रेलवे स्टेशन पहुंचे, बेंगलोर से सात घंटे की यात्रा है। 

होसपेट छोटा सा रेलवे स्टेशन है लेकिन यातायात के साधनों की कमी नहीं है। हौसपेट में खानपान के होटल भी अच्छे हैं लेकिन हमने अडवांस में  होटल बुक नहीं कराया था सो एक ऑटो वाले को पकड़ा कि किसी अच्छे साफ होटल ले चले। उसने रेलवे स्टेशन से 2 किलोमीटर दूरी पर एक  होटल का कमरा  दिला दिया। 

हम्पी जाएँ तो होसपेट में ही ठहरें। हम्पी में ठहरने की जगह भारतीयों को पसंद नहीं आएगी।
वहाँ एक होमस्टे का पूरा एरिया है जिसे विरूपापुर गड्डे (गाँव) कहते हैं। यहाँ इजरायली,फ्रांसीसी जैसे  टूरिस्ट महीनों रहते हैं जिन्हें मोटर सायकल, खाना, नशा, गाइड उनके होमस्टे वाले उपलब्ध कराते हैं। 

हम्पी के दोनों हिस्से दो दिन में घूमें जाने चाहिए क्योंकि घूमने की ढ़ेर सारी जगहें हैं। गाइड अवश्य करें वरना बहुत सी खूबसूरत बातें अनजानी रह जाएंगी।

छप्पन खम्भों वाला सारेगामा मंदिर

हम्पी, हौसपेट से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर है।
जाने के लिए बहुत यातायात उपलब्ध नहीं है लेकिन ऑटो लगातार विरूपाक्ष मंदिर तक जाते हैं। 

अगर आप ज्यादा दिन के लिए गए हैं तो जैसे चाहें वैसे समय बिताएँ वरना निजी कार बुक कर लें। । 

हम्पी पैदल नहीं घूमा जा सकता सो वाहन सिर्फ जाने के लिए नहीं बल्कि  पूरे दिन के लिए बुक करें जिसका इंतजाम आपका होटल वाला कर देगा। 

स्थानीय लोगों की बात सुने। मेरे होटल वाले ने राय दी कि आप कार की बजाय ऑटो कर लें क्योंकि हर थोड़ी दूर पर आपको उतरना होगा, ऑटो सस्ता भी पड़ेगा और सुविधाजनक भी। ये बात सच थी। 

हम नहा धोकर, नाश्ता करके करीब 9 AM पर होटल से निकल पड़े।

हम्पी के पहले दिन हेमकूट वाला साइड देखा जाता है जो मंदिरों से भरा है।  

विरूपाक्ष मंदिर, चना गणेश, सरसों गणेश, विजय विट्ठल का विशाल परिसर, शिलारथ, कृष्ण महल, लोटस महल, बड़वी लिंग, उग्र नरसिंघ, पतालेश्वर शिवालय, बड़ी/छोटी बहन का पत्थर, दंडनायक का किला, हजार राम का किला जिसमें सम्पूर्ण रामायण उत्कीर्ण है, काले पत्थर का जलाशय, गजशाला,सारेगामा भवन आदि है। 

ये सारे मंदिर एक दूसरे से या तो लगे हुए हैं या थोड़ी दूरी पर हैं, हाँ पैदल काफी चलना पड़ता है।

हेमकूट के द्रश्य
हेमकूट के द्रश्य
हेमकूट के द्रश्य

पूजा सिर्फ विरूपाक्ष मंदिर में ही होती है बाकी मंदिर खंडित होने की वजह से पूजित नहीं हैं। 

मंदिर की दक्षिण दिशा में हेमकूट है जिसके पठार पर अनेकों सुंदर भग्नावशेष आज भी मन मोह लेते हैं और हम्पी को दर्शाने के लिए हेमकूट की फ़ोटोज़ ही ज़्यादातर नेट पर पाई जाती हैं। 

हम्पी के मंदिर प्रांगणों में चम्पा/ गुलाचीन के सैकड़ों साल पुराने पेड़ पाये जाते हैं जो कि अद्भुत बात है।  

विरूपाक्ष मंदिर

इतने मंदिर घूमने तक दोपहर हो चुकी थी, भूख लग आई थी सो ऑटो वाले ने एक प्रसिद्ध शाकाहारी जगह में खाना खाने की सलाह दी। 
इसका नाम ग्रीन रेस्टोरेन्ट था। साफ़ सुथरा, नीचे या ऊपर बैठ कर खाने की सुविधा वाली कलात्मक जगह थी। इसे राधा कृष्ण को मानने वाले  कई  विदेशी मिलकर चलाते हैं। 

भोजन ताजा था और बुफ़े सिस्टम में दसियों व्यंजन थे। थोड़ा महंगा लगा।

दोपहर बाद कृष्ण राय का महल,वीरभद्र देवालय और महानवमी किला और उसका विशाल प्रांगण देखा। ये वही किला है जिसमें विजयनगर के उत्सव,खेलकूद होते थे और ये पूरा चन्दन की लकड़ी से बना था,हमले के बाद छह महीने तक सुलगता रहा।

हम्पी का सूर्यास्त गज़ब का  है सो सरसों गणेश ( आकार की वजह से पड़ा नाम) के पहाड़ी स्थान से ढलता सूरज देखा जा सकता है।अगर किष्किंधा साइड में हैं तो मातंग पर्वत सबसे उत्तम जगह है।

विरुपाक्ष मंदिर प्रवेश द्वार
बड़ी छोटी बहिन का पत्थर
लोटस महल
हम्पी का सूर्यास्त

दूसरा दिन – प्राचीन पंपा क्षेत्र

दूसरे दिन की शुरुआत किष्किंधा साइड से करें। 

सुबह जल्दी निकल जाएँ क्योंकि हनुमान जन्म स्थली पर्वत पर ठंडे ठंडे में हो आयें बाद में धूप लगेगी।  हम्पी का ये साइड बहुत खूबसूरत है। इसमें प्रकृति भरपूर है। पूरे रास्ते तुंगभद्रा ,ऊंचे पर्वत,धान के खेत बहुत लुभाते हैं।  

सबसे पहले हनुमान जी की जन्म स्थली “मातंग पर्वत” जिसे अंजेयानाद्रि पर्वत भी कहते हैं से शुरुवात करनी चाहिए। कहते हैं यहाँ हनुमान जी का जन्म हुआ था और उनका राम से मिलन भी यहीं हुआ था।  

पर्वत पर जाने के लिए संकरी, चौड़ी पहाड़ों को काटकर करीब 575 सीढ़ियाँ बनाई गई हैं। कई बुजुर्ग अपने परिवारीजनों की प्रतीक्षा नीचे बैठ कर ही कर रहे थे क्योंकि ऊपर सिर्फ पैदल ही जाया जा सकता है।  

ऊपर पहुँचने पर सम्पूर्ण हम्पी शहर, धान के खेत, सर्पीली तुंगभद्रा नदी खूब दिखती है। विशाल पथरीला क्षेत्र भी है जिसपर हनुमान जी का मंदिर बना हुआ है और दर्शनार्थी घूम सकते हैं।
मंदिर में एक काँच के बक्स में तैरता पत्थर बहुत आश्चर्य में डालता है, कहते हैं कि ये लंका विजय के समय राम सेतु में उपयोग हुए पत्थरों में से एक है।

मातंग पर्वत का शिखर

उसके बाद खूबसूरत सानापुर लेक जो कि बड़े बड़े पत्थरों से घिरी हुई है देखने गए। यहीं पास में संग्रहालय भी है। पंपापुर आश्रम जहां शबरी का आश्रम है और पवित्र पंपा सरोवर भी है। यहाँ बंदरों की भरमार है जिनसे पर्स, चश्मा आदि बचाया जाना चाहिए। 

दुर्गा मठ मंदिर तथा रास्ते में पड़ने वाले छोटे छोटे स्थान देखे जा सकते हैं। शाम को सूर्यास्त के बाद  तुंगभद्रा डेम पर लाइट एंड साउंड शो भी होता है।

मातंग पर्वत पर बना तालाब

हम्पी जाने से पहले थोड़ा इतिहास पढ़ कर जायें तो ज़्यादा मजा आएगा। 

गाइड सोचसमझ कर करें, उससे बात करें ताकि जांच सकें कि उसका उच्चारण आप समझ पा रहें हैं या नहीं क्योंकि ज़्यादातर गाइड कर्नाटक मिक्स इंगलिश बोलते हैं जो कभी कभी समझ मेन नहीं आती। 

मोलभाव अवश्य करें। 


खर्च

होटल- रु 2200 प्रतिदिन

गाइड- रु 1100 एक दिन  ( किष्किंधा साइड के लिए गाइड न करें)

ऑटो- 1200/ दो दिन के लिए

दिन का खाना- रु 300 प्रति थाली ( ड्राइवर फ्री)

विजय विट्ठल मंदिर में बेट्री रिक्शा –रु 10 प्रति व्यक्ति

मातंग पर्वत से हम्पी का मनभावन द्रश्य

 

 

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