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शशि काण्डपाल द्वारा प्रकाशित
16 सितंबर, 2020

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हम 19/12/2019 की सुबह 9 बजे टैक्सी से कूर्ग की तरफ निकल लिए। मंगलोर से कूर्ग की दूरी करीब 135 किलोमीटर है । रास्ता इतना खूबसूरत था कि मंजिल तक पहुँचने की बिल्कुल जल्दी नहीं थी।  

इस बार हमने टैक्सी 3 दिन के लिए बुक की ताकि मेंगलुरु से कूर्ग घूमते हुए मैसूर ड्रॉप करवा सकें। इन छोटी जगहों पर जाकर लोकल वाहन ढूँढना समय खराब कर सकता था। 

हम मंगलोर से कूर्ग करीब ढाई घंटे में पहुँच गए। होटल पहले से बुक नहीं था सो ड्राइवर की मदद से एक साफ, सुथरा खूबसूरत होम स्टे मिल गया।

होम स्टे में हमें होटल वाली सुविधाओं की कमी खली जैसे कि साबुन, तौलिया, पानी आदि पहले से नहीं रखा गया था जबकि पहुँचने से एक घंटा पहले बात हो चुकी थी। 
हमें कहीं भी पहुँच कर समय का सदुपयोग करते हुए ज्यादा से ज्यादा स्पॉट घूमने होते हैं लेकिन इन सब चीजों के इंतजाम में समय लगा। चाय या नाश्ता जैसी सुविधा भी आसपास नहीं थी लेकिन घर, फर्नीचर, बेड, बाथरूम बहुत साफ सुथरा था। 

आपको एक बात मेडिकरी की हमेशा याद दिलाती रहेगी -यहाँ टाटा नैनो को टैक्सी में बदल कर चलाया जाता है जो कि पहाड़ी रास्तों पर बहुत क्यूट दिखती हैं।

कूर्ग कर्नाटक का छोटा सा, शांत, सीधा साधा हिल स्टेशन है। शहरों की आपाधापी से भाग कर यहाँ चैन पाया जा सकता है। घर ढलवा छत और लंबे बरामदे वाले बेहद खूबसूरत लगते हैं। यहाँ के बहुतायत लोग कोडवा संप्रदाय से हैं जो कि ज़्यादातर जमींदार हैं। इनकी वीरता इनकी पहचान है। 

स्कन्द पुराण के अनुसार चंद्र वर्मा जो कि मत्स्य देश के राजा का पुत्र था वो इन प्रचंड वीर कोडवा कबीले का प्रणेता था। वो महालक्ष्मी का अनन्य भक्त था। उसने पूरे भारत में धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया और उसकी सुरक्षा में एक सेना की टुकड़ी हमेशा उसके साथ चलती थी।
जब वो इस कोडागु क्षेत्र, कावेरी के उद्गम स्थल (कूर्ग) पहुंचा तो ये सारा क्षेत्र घने जंगल और जानवरों से भरा था। उसने अपनी सेना के साथ इसे रहने लायक बनाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। चंद्र वर्मा इसका पहला राजा बना। 

आज भी भारत में सिर्फ कोडवा जनजाति के लोग बिना लाइसेन्स के हथियार रख सकते हैं। 

ब्रिटिश से संघर्ष कूर्ग वार के नाम से प्रसिद्ध है और यहाँ कई फ़्रीडम फाइटर की कहानियाँ सुनी जा सकती हैं। उनकी समाधियाँ भी हैं। पी. करिअप्पा को तो अंग्रेजों ने दिल्ली जेल में बंद कर दिया था। 1934 में कूर्ग अंग्रेजों के हाथ आ गया था तो उन्होने यहाँ शिक्षा के केंद्र खुलवाए, वैज्ञानिक तरीके से काफी की खेती करना  सिखाया जिससे इस क्षेत्र की आर्थिक व्यवस्था मजबूत हुई। 1956 तक ये अलग कूर्ग राज्य था लेकिन उसके बाद कोडुगु क्षेत्र मैसूर स्टेट में मिला दिया गया जो अब कर्नाटक है।

यहाँ झरने, कॉफी बागान, रबर प्लांट के बाग,मसाले के गार्डेन बहुत हैं। कूर्ग का स्थानीय नाम मेडिकिरी है। ये हिल स्टेशन राजा सीट मोन्यूमेंट के लिए जाना जाता है जिसके चारों तरफ धान के खेत और दूर दूर तक दिखने वाले पहाड़ हैं। यहाँ अब्बे फाल्स,मेडिकिरी फोर्ट,राजा सीट पार्क,व्यू पॉइंट पार्क और गवर्नमेंट म्यूजियम देखने लायक हैं। यहाँ की रोबोस्टा कॉफी विश्व प्रसिद्ध है।

कूर्ग कभी भी जा सकते हैं लेकिन मार्च,अप्रैल में पहाड़ों तथा फूलों की बहार देखने लायक होती है बस जून से सितंबर तक जाएंगे तो भारी बारिश का सामना करना पड़ेगा। तालकावेरी नामक जगह  से कावेरी नदी का उद्गम है और यहाँ ब्रह्मा जी का मंदिर है जो कि दक्षिण भारत में अकेला ब्रह्मा मंदिर है।

अब्बे/Abbey फ़ॉल्स

मेडिकिरी से करीब आठ किलोमीटर दूर ये फाल कोडगू, वेस्टर्न घाट, कर्नाटक में है। ये कावेरी के उद्गम की सबसे नजदीक का झरना है जो कि करीब 70 फिट की ऊंचाई से गिरता है और इसे भरी बरसात में  देखने वाले अपना दिल थाम लेते हैं क्योंकि इसकी पूरी खूबसूरती बारिश के मौसम में ही आ पाती है। 

ये फाल सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है। फाल दोनों से तरफ जमींदारों के  कॉफी बाग, मसाला बाग और काली मिर्च की लतरों से घिरा हुआ है। फाल के ठीक सामने एक हेंगिंग ब्रिज हुआ करता था वो अब क्षतिग्रस्त है। बगल में बने टावर और प्लेटफार्म से इसे देखा जा सकता है।  

पहले इसे एक अंग्रेज़ की पत्नी के नाम पर जस्सी फाल कहते थे बाद में बदल दिया गया। ये क्षेत्र भी जंगली था लेकिन इसे एक दिन मिस्टर नरवेन्दा बी ननियाह ने डिस्कवर किया और गवर्नमेंट से लीगली अधिकार  लेकर इस जंगल को कॉफी तथा मसालों के बागों में बदल दिया। 

फॉल को देखने रोड से करीब आधा किलोमीटर नीचे पैदल जाना होगा लेकिन रास्ता बहुत अच्छा है और वापस आकर यहाँ लगने वाले स्टॉल से कई फ्लेवर की कॉफी पीना न भूलें तथा और भी स्थानीय चीजें  खाना, लेना याद रखें। अपने जीवन की यादगार फ़ोटो भी यहाँ ले सकते हैं।

मेडिकिरी फोर्ट

मेडिकिरी फोर्ट को मेरकरा फोर्ड भी कहते हैं। ये ऐतिहासिक स्थान है और बहुत पारंपरिक सा लगता है। सजावट नहीं है लेकिन भव्य है।  

इस फोर्ड की नींव मुद्दूराजा ने 17वीं शताब्दी के बीच रखी थी। उन्होने इस किले में एक महल भी बनवाया था। बाद में इसे ग्रेनाइट से जड़वाना और फिर से बनाने का काम टीपू सुल्तान ने किया और बदल कर नाम रखा जाफराबाद! 

इसको सुबह 10 बजे से शाम 5;30 तक देखा जा सकता है। फोर्ट की दीवारों पर बनी सुरक्षा चौकियाँ और रास्ते उस वैभवशाली समय का एहसास कराते हैं। यहाँ बड़े खूबसूरत से दो हाथी बाग में बनाए गए हैं जो भव्यता प्रदान करते हैं। 

अब  महल आम जनता के लिए बंद है क्योंकि उसमें कर्नाटक सरकार का न्याय से सम्बद्ध ऑफिस चलता है। यहाँ एक चर्च भी है और मंदिर भी जिसमें सैकड़ो साल पुरानी स्थानीय देवता की मूर्ति है। आप दर्शन कर सकते हैं। यहाँ एक छोटा सा म्यूजियम है जहां काफी कुछ इतिहास और संस्कृति को जाना जा सकता है। आप कर्नाटक के इतिहास से संबन्धित किताबें भी यहाँ से खरीद सकते हैं।

राजा सीट

राजा सीट मेडिकरी का सबसे प्रसिद्ध पार्क है। ये ऐसी जगह पर बनाया गया है जहां से चारों तरफ पहाड़ों की खूबसूरती और प्रकृति को भरपूर निहारा जा सकता है। यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों देखने लायक है। 

ये बाग कूर्ग के राजाओं की पसंदीदा जगह रही जहां वो घूमने तथा प्रकृति को निहारने आते थे इसीलिए इसका नाम राजा सीट पड़ गया। यहीं व्यू पॉइंट और लोगो के बैठने की व्यवस्था बनाई गई है ताकि प्रकृति का पूरा आनंद लिया जा सके। पूरे पहाड़ हरे भरे हैं जो कि साइट सीन को अमूल्य बनाते हैं। 

यहाँ गांधी जी की कुछ चीजों को प्रदर्शित करने के लिए गांधी मंडप बनाया गया है और बच्चों के खेलने के लिए पार्क भी है और टौय ट्रेन भी। पार्क के बाहर कर्नाटक सरकार की अनुमोदित दुकानें हैं जहां से आप कॉफी, मसाले, फलों की नॉन अल्कोहोलिक शराब उचित दाम खरीद सकते है।

हम 11;30 बजे मंगलोर से कूर्ग पहुंचे थे और करीब एक घंटा होमस्टे में लग गया सो आज 19/12/2019 का दिन राजा सीट में सूर्यास्त देखकर खतम किया। अभी खाने का होटल भी देखना था तथा थक भी गए थे सो ड्राइवर से होम स्टे में ड्रॉप करवा कर सुबह 7 बजे मिलने की बात हुई।
शुरुआत दुबारे हाथी पार्क से होनी थी जो कि करीब 17 किलोमीटर दूरी पर था और रास्ते में कॉफी बागान देखेंगे ये तय हुआ।

कूर्ग में देखने के स्थल कूर्ग के दोनों तरफ हैं और हमें मैसूर जाना था सो तय हुआ कि एक रात कूर्ग और दूसरी रात कुशल नगर में गुजारेंगे फिर सारे स्पॉट देखने के बाद फिर से 35 किलोमीटर कूर्ग वापस आने में कोई तुक न था। 

शाम को  फ्रेश होकर कूर्ग में खाने के होटल की खोज में गए तो होटल खास नहीं लगे सबमें छोला भटूरा या अन्य तली हुई चीजें उपलब्ध थीं हम दाल रोटी या स्थानीय रागी मुद्दे, डोसा वगैरह हल्का खाना ढूंढ रहे थे आखिर एक होटल मिला, खाना अच्छा था लेकिन वैराइटी बहुत कम थी बस काम चल गया।
खाने के होटल अच्छे हैं लेकिन डिनर 8 बजे के बाद मिलता है जबकि हम 7 बजे तक डिनर खा लेने के आदी हैं। कूर्ग वालों के हिसाब से अभी शाम की चाय का समय था अतः सब जगह स्नेक्स मिल रहे थे।

यहाँ सिल्क की साड़ियाँ खूब उपलब्ध हैं और आपको अपनी पसंद की दुकान पर आपका ड्राइवर ले जाने की पूरी कोशिश करेगा। हमेशा कर्नाटक सरकारी अनुबंध वाली दुकानों से सामान लें तो ठगे जाने की आशंका कम होगी।

दूसरा दिन – कूर्ग से दुबारे

सुबह 6 बजे ही ड्राइवर हाजिर था क्योंकि वो ठीक से सो नहीं पाया था दूसरे हमें नाश्ता करने की ज़िम्मेदारी भी उसी की थी। 

होमस्टे में शायद हम अभी तक सोये ही हों सोचकर चाय/काफी तक नहीं पूछी गई, जरूरी नहीं कि हर जगह आपको सारी सुविधाएं मिलें और वही हुआ इसीलिए मेरा चाय का सामान और केतली साथ चलती है। छोटे हिल स्टेशन में अपना ध्यान रखना पड़ता है।  हमने तय किया कि आगे अब हम होटल में  ही ठहरेंगे । 

ड्राइवर हमें नाश्ता कराने कूर्ग के सुप्रसिद्ध होटल में ले गया जहां हमें लगा कि ये काफी महंगा होगा लेकिन थोड़े से अंतर पर बेहतरीन सर्विसेज मिली। अगला पड़ाव 2 दुकान छोड़ कर तंदूरी चाय का था जहां खुशबूदार तंदूरी कॉफी पी और मैं एक और कुल्हड़ लेकर ही गाड़ी में बैठी।

दुबारे हाथी पार्क  

एक बेहद खूबसूरत जगह है जहां आप नाव, प्रकृति, पहाड़ और हाथियों को देखने का लुत्फ उठा सकते हैं। 

ये कावेरी नदी के तट पर बसाया गया है। ये कुशलनगर, सिद्धपुरा रोड पर है जिसे फॉरेस्ट विभाग ने दुबारे जंगल के एक कोने में हाथियों की देखभाल के स्थल की तरह बसाया है जहां दर्शकों को आने की छूट है। 

यहाँ हाथियों की देखभाल, उन्हें नहलाना, लोगो से मिलवाना और तरह तरह के कामों की ट्रेनिंग देने का सेंटर है। 

यहाँ का सारा कार्यभार फॉरेस्ट डिपार्टमेन्ट के हाथ में है मसलन नावों की व्यवस्था, नाविक भी उन्हीं के हैं। 

टिकट बेचना,दर्शकों को नियंत्रित करना उन्हीं की ज़िम्मेदारी है। एक काम की जगह को कैसे व्यवसाय में बदला जाता है इसका बेहतरीन उदाहरण है दुबारे । जंगल का हर कोना आपको पिक्चर परफेक्ट लगेगा।

कावेरी निसर्गधाम बैम्बू पार्क

निसर्गधाम कावेरी नदी का बनाया हुआ एक डेल्टा है जिसे स्थानीय वासी एक आइलेंड की तरह देखते आए हैं। 

ये कावेरी के निकट,जिला कुशल नगर, कोडगू, कर्नाटक में है। मेडिकरी से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है और छुट्टी मनाने का सबसे प्यारा पिकनिक स्पॉट भी है। यहाँ बाहर ढेर सारी दुकानें, रेस्टोरेंट्स भी हैं जहां आप क्राफ्ट, कपड़े तथा जरूरत की चीजें खरीद सकते हैं, खा सकते हैं इसलिए यहाँ आना सबको पसंद है। 

पार्क करीब 64 एकड़ में फैला हुआ है जिसमें बांस के बड़े बड़े झाड, जंगल, टीक के पेड़, चन्दन के पेड़, मोर, हिरण, खरगोश और ऊंचे ऊंचे मचान बने हुए हैं जहां चढ़कर आप दूर दूर तक पार्क को देख पाएंगे। बेम्बू को बहुत खूबसूरती से पार्क के रूप में विकसित किया गया है। 

यहाँ फॉरेस्ट विभाग का गेस्ट हाउस  भी है और बेम्बू हट भी जिनको किराए पर लिया जा सकता है। आप यहाँ हाथी की सवारी भी कर सकते हैं और बोटिंग भी। यहाँ एक खूबसूरत सा बेम्बू हेंगिंग पुल भी है जो फोटो खींचने के लिए पर्फेक्ट पिक्चर बनाता है।

नामद्रोलिंग मोनेस्ट्री/ गोल्डेन टैम्पल

Namdroling nayingmapa Monastery ( शाब्दिक अर्थ है बैम्बू से बना मंदिर) जिसे तिबतियन गोल्डेन टैम्पल के नाम से भी जाना जाता है चटख रंगो, शानदार वास्तुकला का भवन और फूलों से भरी जगह का नाम है। 

यहाँ इंडो-तिब्बत बुद्धिज़्म का विश्व का सबसे बड़ा केंद्र है। ये ब्यलाकुप्पे, मैसूर जिले के अंतर्गत आता है। 

यहाँ बौद्ध संघ के 1000 से ज्यादा लामा और नन पढ़ते हैं। यहाँ एक अस्पताल भी है। पुरानी  मोनेस्ट्री 11 वीं शताब्दी में बनी थी लेकिन नया मंदिर 1999 में और स्कूल 1978 से चल रहा है।

यहाँ साठ फिट ऊंची बुद्ध प्रतिमा विराजमान है जिसे बौद्ध बहुत पवित्र मानते हैं।  यहाँ हर देश के बौद्ध भिक्षु बुद्धिज़्म की पढ़ाई करने आते हैं। 

मंदिर सबके लिए खुला रहता है। इसके चौड़े द्वार बेहद रंगीन हैं और अंदर पूरा सुनहरे, नीले, हरे, लाल रंगों से कलाकृतियाँ बनाई गईं है। यहाँ (लोसर) तिब्बतन न्यू ईयर बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 

यहाँ आप जी भर कर शॉपिंग कर सकते हैं क्योंकि लकड़ी का बना सामान, तिब्बतन ज़्वेलरी, इंपोर्टेड सामान, जप करने की तरह तरह की विशुद्ध मालाएँ मिलती हैं। चन्दन का सामान बिना कर्नाटक सरकार की अनुमति लिए नहीं बेचा जा सकता लेकिन यहाँ चन्दन की माला, तेल, इत्र आदि मिल जाते हैं, आप ना चाहते हुए भी ढ़ेर सी ख़रीदारी कर डालते हैं। टैम्पल सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक खुला रहता है। एंट्री फ्री है।   

कुशल नगर होटल

एक होटल के बारे में तभी बताया जाना चाहिए जब वो आपको या तो बहुत अच्छा लगा हो या बुरा, लेकिन हमें ये होटल वहाँ मिला जहां उम्मीद नहीं थी सो थोड़ा जिक्र जरूरी है। 
हम कूर्ग का होम स्टे छोड़ आए थे क्योंकि 35 किलोमीटर उल्टा नहीं जाना चाहते थे सो होटल ढूँढने की ज़िम्मेदारी ड्राइवर की थी। 

जब करीब 2 घंटे बाद गोल्डेन टेंपल से बाहर आए तो पहला प्रश्न यही था कि होटल मिला या नहीं? 

कुशल नगर शहर यहाँ से करीब 8 किलोमीटर और आगे था। ड्राइवर ने कहा मेरे साथियों ने एक रिसार्ट पास में ही बताया है चलिये देख लेते हैं। वहाँ पहुँच कर लगा कि ये होटल हमारे पूरे कर्नाटक प्रवास का सबसे सुंदर होटल था। 

बाग,स्विमिंग पूल, आर्डर का खाना, खुला किचन, बैठने की बेहतरीन जगह और ड्राइवर के लिए भी अच्छा इंतजाम, लगा कूर्ग में एक और जगह देख ली। 

चारों तरफ कॉफी के बाग उसे और सुंदर जगह बना रहे थे। बेहतरीन खाना ऑर्डर पर 7 बजे तक हमारा इंतजार कर रहा था और नारियल के मसाले वाली सब्जी तथा रागी की रोटियाँ लाजवाब थीं, शेफ़ पूछने पर पता चला कि सारा खाना यहाँ स्थानीय औरतें बनाती हैं। धन्यवाद करने में बिलकुल परेशानी नहीं हुई जबकि न मैं एक शब्द कन्नड जानती हूँ न वो हिन्दी लेकिन खाना दिल से होते हुए पेट तक गया था। 

कुछ देर टहलने के बाद सुबह फिर से 7 बजे का टाइम बता कर सोने चले गए क्योंकि हमें अब मैसूर जाना था। स्वच्छ आसमान पर चाँद चमक रहा था और नीरवता बेहद शान्तिदायक थी।

ख़र्च

फॉल टिकट-रु 15

पार्किंग-रु  15

होमस्टे रु 2500

राजा सीट पार्क किराया-रु  5,

राजा सीट टोय ट्रेन रु 20

निसर्गधाम टिकिट-रु 10

निसर्गधाम बोटिंग इच्छानुसार

दुबारे टिकिट- एलिफ़ेंट फन एक्टिविटी सहित- रु करीब 1400/प्रति व्यक्ति  ( एजेंट)

दुबारे शेयर्ड  फेरी रु 50,

दुबारे प्राइवेट बोटिंग/ रु 500 ( आपको खुद राफ्टिंग करनी  होगी)

खुलने का समय सुबह 7:30 से ( दिन में 3 घंटा बंद होता है सो एकदम सुबह निकल जाएँ।    

कुशल नगर होटल रूम रु 2500

टैक्सी मंगलोर से कूर्ग 2 दिन और मैसूर ड्रॉप रु 7500


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